श्रीमद्वाल्मीकीय
रामायण ग्रन्थाकार—त्रेतायुगमें महॢष वाल्मीकिके श्रीमुखसे साक्षात् वेदोंका ही
श्रीमद्रामायणरूपमें प्राकट्य हुआ था, ऐसी आस्तिक जगत्की मान्यता है। अत:
श्रीमद्रामायणको वेदतुल्य प्रतिष्ठïा प्राप्त है। धराधामका आदिकाव्य होनेके कारण
इसमें भगवान्के लोकपावन चरित्रकी सर्वप्रथम वाङ्मयी परिक्रमा है। इसके एक-एक
श्लोकमें भगवान्के दिव्य गुण, सत्य, सौहार्द, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता,
गम्भीरता, ज्ञान, पराक्रम, प्रजा-रंजकता, गुरुभक्ति, मैत्री, करुणा,
शरणागत-वत्सलता-जैसे अनन्त पुष्पोंकी दिव्य सुगन्ध है। मूलके साथ सरस हिन्दी
अनुवादमें दो खण्डोंमें उपलब्ध, सचित्र, सजिल्द। |